आकांक्षा: द डेविल्स एंजेल - 3
रात के 10 बजे के करीब शिमला के जंगल, जिन्हे आज भी लोग शापित मानते थे और वहाँ जाने के नाम से भी डरते थे, वहाँ चार दोस्त पिया, पलक, अंश और मयंक ट्रैकिंग के लिए आए हुए थे। उनकी उम्र लगभग 20-23 साल के बीच थी। रात हो जाने के कारण वो जंगल के अंदर नही गए और वही पास मे टेंट लगाकर बोनफायर के आगे गेम्स खेल रहे थे।
मयंक ने एक खाली बोतल घुमाते हुए कहा, "कम ऑन गायज... जल्दी सेलेक्ट करो... ट्रुथ या डेयर...."
बोतल का किनारा घूम कर पलक की तरफ आया। जिसे देखकर बाकी तीनो जोर से चिल्लाएं।
पलक ने अपने बाल झटकते हुए कहा, "डेयर...! मै नही डरती किसी से.... जल्दी बताओ क्या करना है?" पलक का उत्साह देख बाकी तीनो के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी।
अंश जल्दी से बोल पड़ा, "मै दूंगा तुम्हे डेयर...!"
पिया ने उसकी हाँ मे हाँ मिलाई और कहा, "कम ऑन अंश...! कुछ खतरनाक सा करवाना कि मैडम के सिर से डेयर का सारा भूत उतर जाए।"
उसकी बात सुनकर पलक ने मुँह बनाया। वो उसकी बात का कुछ जवाब दे पाती उस से पहले अंश ने हँसते हुए कहा,"ओके मिस डेयरिंग पलक..! ट्रैकिंग के लिए आये है ना, तो जंगल के अंदर जाकर वहां का एक राउंड लगा कर आओ।"
पलक उसकी बात सुनकर आँखे बड़ी करके बोली, "पर ये जंगल तो बहुत ज्यादा बड़ा है। मै इतनी रात को पूरे जंगल मे कैसे घूमकर आऊँगी?"
पलक ने उसकी बात मनाने से इंकार कर दिया। अंश ने उसे वो डेयर करने से मना कर दिया।
लेकिन पिया अभी भी जिद पर अड़ी रही।
"पलक अपना मोबाइल ले जा... और ज्यादा नही तो एक किलोमीटर तक जंगल के अंदर जाकर आ जाना। इतना काफी होगा। लेकिन तुम भी अपना डेयर कंप्लीट करना ही पड़ेगा।"
अंश ने कहा, "हाँ अगर आज तु नही गयी, तो नाम अब से डेयरिंग पलक से फटू पलक हो जाएगा।"
मयंक ने उनकी तरफ आँख दिखाकर कहा, "नही .... पलक कहीं नही जायेगी। पता है ना लोग क्या बोल रहे थे इस जंगल के बारे मे... ये जंगल शापित है।"
अंश – "तुम भी क्या लोगो की बातों मे विश्वास करने लगे। कुछ नही है इस जंगल के अंदर... गो पलक... और अगर तुम्हे डर लग रहा है... तो बता दो।"
पलक के पास अब हाँ करने के अलावा और कोई रास्ता नही बचा। पलक ने अपना एटीट्युड दिखाकर बोला,"पलक मेहता किसी से नही डरती। मै जंगल के अंदर एक नही बल्कि पूरे दो किलोमीटर आगे तक जाऊंगी।"
मयंक अभी भी उनकी इस बेवकूफी मे साथ नही देना चाहता था। वो उसे रोकने की पूरी कोशिश कर रहा था।
"प्लीज पलक ....जिद मत करो। हम लोग दिन में चले जाएंगे इस जंगल में। वैसे भी कल तो अंदर जाना ही है। तुम अपना डेयर कल पूरा कर लेना। बेवकूफी में आकर कुछ ऐसा काम मत कर देना कि जिंदगी भर पछताना पड़े।"
पिया ने आँखे तरेरकर बोला,"पलक..! ये मयंक तो है ही फट्टू। तू इसकी बातों पर ध्यान मत दे। तू एक काम कर.. अपने साथ में ये बैग ले ले। इसमे खाने पीने का सामान है और यह ले टॉर्च ....जंगल में बहुत अंधेरा होगा। और हाँ स्टेप ट्रैकर ऑन कर लेना, ताकि पता चल सके कि तुम जंगल मे कितने कदम चल कर आई हो।"
मयंक के लाख समझाने के बावजूद अंश और पिया की जिद पर पलक जंगल के अंदर गयी।
वो घबराते हुए जंगल मे आगे बढ़ रही थी। अपना ध्यान भटकाने के लिए वो कानों मे इयरपीस लगाकर म्युज़िक सुनते हुए आगे बढ़ रही थी। पलक हाथ मे टॉर्च लिए जैसे तेसै आगे बढ़ रही थी। वहाँ के पेड़ इतने घने थे कि कोई भी उन्हें देख कर डर जाए।
पलक ने खुद के डर पर काबू करके बोला,"अंदर तक आ तो गई हूं, लेकिन यहां पर कितना अंधेरा है। यहाँ तो कोई भी डर जाए। हे बजरंग बलि...! रक्षा कीजियेगा। पता नहीं यहां पर इतनी शांति क्यों है? एक काम करती हूं इधर-उधर वॉक कर लेती हूं और जाकर बोल दूंगी कि 2 किलोमीटर जा कर आई हूं।"
पलक इधर उधर घूम रही थी कि उसे वहाँ किसी के होने का अहसास हुआ। वो चीज हवा से भी तेजी से उसके कानों के ठीक पास से गुजरी थी।
पलक ने चिल्लाते हुए कहा, "क....कौन है... कौन है....वहां पर... सामने आओ। प.... पिया.... अंश ..... मयंक.... तुम लोग हो ना मुझे परेशान करने के लिए? मैं अच्छे से जानती हूं कि तुम लोग मुझे परेशान करने के लिए मेरे पीछे आए हो। देखो मुझे इस तरह का मजाक बिल्कुल पसंद नहीं है।"
पलक को चिल्लाने के बावजूद भी कोई नहीं दिखाई देता। तभी वो हवा का झोंका एक बार फिर उसी तेजी से उसके पास से गुजरा।
पलक घबराते हुए वहाँ से उल्टे पैर भागने लगी।
"ब....बचाओ..... ब.... बचाओ..... बचाओ कोई मुझे।"
पलक बेतहाशा इधर से उधर भाग रही थी। अंधेरा होने की वजह से उसे समझ नहीं आया कि वह किस दिशा में आगे जाए और वह जंगल की भूल भुलैया में खो गई थी। भागते- भागते उसके हाथ से टॉर्च और बैग गिर गयी। तभी अचानक से वह किसी से टकरा गयी। पलक डर के मारे अपनी आंखें बंद कर ली। तभी उसे महसूस हुआ कि वह किसी की गोद मे है।
पलक ने धीरे से एक आँख खोल कर बोला,"क... कौ... कौन... हो... तुम?"
सामने से कोई जवाब नही आया।
पलक ने हिम्मत करके अपनी दोनो आँखे खोली।
"जवाब दो.... कौन हो तुम? इस जंगल में कर क्या रहे हो?" उसे वहाँ देखकर उसमे थोड़ी हिम्मत आई। वो उस से दूर होते हुए बोली, "तुम डरा रहे थे ना मुझे?"
पलक ने अपनी पॉकेट से मोबाइल निकाला और उसकी टॉर्च ऑन करके उस लड़के की तरफ देखा।
उसने देखा कि सामने एक 24-25 साल का, लम्बा लड़का खड़ा था। उस लड़के के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी और चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी, जो कि उसके गोरे चेहरे पर काफी जच रही थी। उसकी हैजल ग्रीन आँखें देखकर पलक बस एक टक उसे ही निहार रही थी।
उसे देखकर पलक ने बुद्बुदाते हुए कहा, "मयंक बेवजह ही घबरा रहा था। वह तो ऐसे रिएक्ट कर रहा था जैसे जंगल में राक्षस हो। पर किसे पता था यहां पर तो एक राजकुमार मिल जाएगा।"
उसने लड़के ने थोड़ी रौबदार आवाज मे कहा, "इतनी रात को आप यहाँ क्या कर रही है?"
पलक ने खोई हुई आवाज मे कहा, "तुम तो किसी सियासत के राजकुमार लगते हो। वो नहीं होते क्या, जो लड़कियों के सपनों में आता है #ख्वाबो का शहज़ादा... जो कि सफेद घोड़े के ऊपर बैठकर आता है.... और अपनी शहज़ादी को ले जाता है।"
उसने उसी रौब से जवाब दिया, "हम राजकुमार ही हैं.... राजकुमार रीवांश.!"
पलक उसकी बात सुनकर खिलखिला कर हंसने लगी। वो आगे बोली, "अच्छा कौनसी रियासत के राजकुमार हो आप?"
रीवांश ने जवाब दिया, "यही से थोड़ी दूर है.... बिलासपुर।
पलक– " वैसे तुम तो देखने मे तो किसी राजकुमार जैसे लगते हो लेकिन मजाक काफी अच्छा कर लेते हो। इस ज़माने मे कहाँ रियासते है। वैसे उम्र क्या है तुम्हारी?"
रीवांश ने खोये हुए स्वर मे कहा, "ये कौनसा साल चल रहा है?"
पलक को अभी भी सब मजाक लग रहा था। उसने अपनी हंसी दबाकर बोला,"1950 चल रहा है।"
"इतना वक्त हो गया..? अगर 1950 चल रहा है, तो..." रीवांश ने अपनी उंगलियो पर गिनकर कहा, "तब तो हम 125 साल के है।"
उसकी बात सुनकर पलक अब अपनी हंसी रोक नहीं पाई। वह ठहाके लगाकर जोर जोर से हंसने लगी।
"तुम ना.. बहुत मजाक करते हो। कोई और सुने तो, सच में डर ही जाए।"
बोलते हुए पलक पीछे मुड़ी तो उसे कोई दिखाई नहीं दिया । एक पल के लिए वो बहुत घबरा गई कि तभी अचानक से किसी ने पीछे से आकर उसकी कमर को कस के पकड़ लिया। पलक ने मुड़कर देखा तो रीवांश उसके बिल्कुल करीब खड़ा था। पलक के दिल की धड़कनें बेकाबू होकर बढ़ने लगी।
पलक ने मदहोश होकर कहा, "अरे हम अभी ही तो मिले है। और इतनी जल्दी... प्यार तो मुझे भी तुम्हे देखते ही हो गया था..... ! लेकिन... " बोलते हुए उसकी आंखें बंद हो गई और वह उस लम्हे को महसूस करने लगी।
उसकी आँखें बंद थी। अचानक से रीवांश के आगे के दो दांत बाहर निकल आए। जिस चेहरे की मासुमियत देखकर पलक उसकी तरफ आकर्षित हो रही थी, उस पर एक शैतान की बुराई झलक रही थी। उसकी हरी आँखो में खून उतर आया।
रीवांश ने भारी स्वर मे कहा, "हमे माफ कीजियेगा....!"
रीवांश की आवाज सुनकर पलक बुरी तरह घबरा गयी। वो कुछ समझ पाती उस से पहले रीवांश का मुँह उसकी गर्दन के दाहिने तरफ था। वो उसकी गर्दन पर अपना मुँह लगाकर उसका खून पी रहा था। पलक के अंदर खून की एक भी बूंद नही बची और वो निढाल होकर गिर पड़ी। रीवांश के होठो पर पलक का खून लगा था। खून पीते ही उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक आ गई थी।
रीवांश ने पलक को उठाया और वही से उठाकर जंगल के बाहर फेंक दिया।
★★★★
उधर आकांक्षा और जानवी को घर आते आते रात के 11 बज गए। जानवी के मॉम डैड किसी वजह से आउट ऑफ स्टेशन चले गए थे। आकांक्षा ने घर आते ही अपना मोबाइल चेक किया, तो उसमे राजवीर जी के बहुत सारे कॉल्स आये हुए थे।
आकांक्षा ने गुस्से मे जानवी की तरफ देखा, "जानवी की बच्ची....!"
जानवी मे मासूम चेहरा बनाया और कहा, "क्या यार..? बच्ची तो तब होगी ना, जब तु हाथ पकड़ कर अपने होने वाले जीजू के बारे मे कुछ बतायेगी।"
उसकी बात सुनकर ना चाहते हुए भी आकांक्षा के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
"तु भी ना.... ! दद्दू को पता तो नही चल गया होगा ना?"
जानवी ने हँसते हुए कहा, "बोल देना फोन साइलेंट था.... नींद आ गई थी या कुछ भी बोल देना ना यार...."
वो लोग आपस मे बात कर रहे थे कि तभी डोरबेल बजी। घर पर कोई ना होने की वजह से वह दोनों घबरा गए ऊपर से मोहन दास जी कि कहीं भी बातों का ख्याल आते ही जानवी चिल्लाकर बोली, "मै नही खोलूगी दरवाजा...!कही कोई पिशाच हुआ तो... !"
आकांक्षा ने घबराते हुए कहा, "तो मै क्यों खोलुं... पिशाच मुझे खा गया तो?"
जानवी– "तुझे नही खायेगा। मैने बोल दिया ना कि मै डोर नही खोलुंगी... वैसे इतनी रात को कौन होगा?"
जानवी की बात सुनकर आकांक्षा सोच में पड़ गई। वो लोग जिस इलाके में रहते थे, वहां पर सब के घर काफी दूरी पर बने हुए थे। तो इतनी रात को किसी का आना लगभग नामुमकिन सा था।
"तुझे हनुमान चालीसा आता है जानवी?"
जानवी ने हाँ मे सिर हिलाया।
आकांक्षा– "चल तो फिर दोनो मिल कर कोरस मे गाते है। पर दरवाजा तो खोलने जाना ही पड़ेगा।"
"जय हनुमान....!" वह दोनों एक साथ बोली कि तभी बाहर से राजवीर जी के चिल्लाने की आवाज आई, "अक्षु.....! जानवी..! दरवाजा खोलो। बच्चियों तुम दोनो ठीक तो हो ना?"
उनकी आवाज सुनकर जानवी ने राहत की साँस ली।
"ओ गॉड .... दद्दू ने तो हमें डरा ही दिया था। मुझे तो लगा कहीं कोई पिशाच तो नहीं आ गया।"
आकांक्षा ने उसे आँखे दिखाकर कहा, "ए लड़की.... मेरे दद्दू को पिशाच मत बोल तू।"
जानवी– "तो आधी रात को कौन आता है ऐसे ?"
आकांक्षा उसके साथ दरवाजे की तरफ बढ़ी।
"मैंने कहा था ना ... अगर मैंने कॉल पिक नहीं किया तो दद्दू डर जाएंगे।"
" डर जाएंगे या हमें डरा देंगे" जानवी ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला।
उन दोनों को सही सलामत देखकर राजवीर जी ने भी चैन की सांस ली। राजवीर जी उनके साथ अंदर आते हुए बात कर रहे थे।
"कहां थी तुम दोनों ? मैं कब से फोन कर रहा था। ना तो कॉल उठा रही थी और ना ही दरवाजा खोल रही थी। जानवी..! अगर तुम अकेली थी तो हमारे घर पर आ जाती। डरा दिया तुम दोनों ने मुझे..! "
आकांक्षा ने वापस दरवाजा बंद करते हुए कहा, "अरे दद्दू ... अब हम दोनो कोई बच्चियां थोड़ी ना है। आप चलिए अंदर... अब इतनी दूर आ ही गए हैं, तो रात को यहीं पर रुक जाइए।"
जानवी– " हां दद्दू आप वापस मत जाइएगा। क्या पता कोई पिशाच आप को उठाकर ले गया तो...! '
उसकी बात सुनकर राजवीर जी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
"अक्षु सच ही कहती है कि उसकी फ्रेंड जानवी थोड़ी पागल सी है।"
उनकी बात सुनकर जानवी ने आकांक्षा को गुस्से से देखा तो उसने मुस्कुराते हुए अपना एक कान पकड़ लिया।
"सॉरी..!"
राजवीर जी जानवी और आकांक्षा के साथ ही जानवी के घर पर रुक गए।
★★★★
दूसरी तरफ जंगल के बाहर मयंक, अंश और पिया पलक का इंतजार कर रहे थे। रात के 2:30 बज चुके थे लेकिन पलक अभी तक वापस नहीं आई थी। उस के वापस ना आने से वो परेशान हो गए। उन्होंने उसे कॉल भी किया लेकिन उसका फोन आउट ऑफ कवरेज एरिया बता रहा था।
मयंक ने उन दोनों की तरफ गुस्से में देखा और कहा,"मैंने तो पहले ही कहा था कि यह जंगल शापित है। मना किया था मैंने पलक को अंदर जाने से ... लेकिन तुम लोगों की एक बेवकूफी की वजह से आज पलक की जान खतरे में हो सकती है।"
पिया को अपने किए पर पछतावा हो रहा था उसने नम आंखों से कहा, "अब तो मुझे भी पलक के लिए डर लग रहा है। उसे गए हुए लगभग 4 घंटे हो गए हैं ... और वह अभी तक वापस नहीं आई है।"
अंश– "अगर मुझे पता होता तो मैं पलक को कभी भी नहीं जाने देता । पता नही क्यों मेरा दिल बहुत घबरा रहा है।"
वह तीनों पलक के लिए बहुत घबरा गए।
"क्यों ना हम पलक को जंगल के अंदर जाकर देखें?" पिया ने सुझाव दिया।
उसके बाद सुनकर अंश थोड़ा नाराज हो गया।
"पागल हो गई हो क्या तुम? क्या पता यह जंगल सच में शापित हो। चलो किसी पास के पुलिस स्टेशन में चलते हैं"
मयंक–"पहले जंगल के आसपास उसे ढूंढते हैं। लेकिन जंगल के अंदर तक नहीं जाएंगे। हो सकता है कि पलक हमें यहीं कहीं मिल जाए।"
"हम उसे अलग-अलग जाकर ढूंढते हैं।" अंश ने कहा, तो पिया ने डरकर उसका हाथ पकड़ लिया, "नहीं.... प्लीज.... मुझे बहुत डर लग रहा है। हम एक दूसरे को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। जहां जाएंगे साथ रहेंगे।"
मयंक– "पिया बिल्कुल ठीक बोल रही है।"
वो चारो पलक को इधर उधर ढूंढ रहे थे कि तभी अचानक पिया का पैर किसी चीज से टकरा गया और वह नीचे गिर गयी।
नीचे गिरते ही पिया नजर सामने पड़ी चीज पर गई। उसे किसी के होने का एहसास हुआ, उसमें अपने मोबाइल की टॉर्च जला कर देखा और चिल्ला कर बोली,"पलक.... पलक .... पलक क्या हुआ तुम्हें ? तुम यहां कैसे आ गई?"
पिया के कहते ही अंश और मयंक ने अपने-अपने टॉर्च की रोशनी पलक की तरफ कर दी। उसे देखकर मयंक को थोड़ा संदेह हुआ और उसने अपनी उंगली उस के नाक के सामने रखकर उसकी सांसो को चेक किया।
उसे देखकर उसकी आँखे फटी रह गयी। उसने पिया की तरफ देखा जो कि उसका हाथ पकड़ कर खड़ी थी।
"पिया...! जल्दी से पलक से दूर हो जाओ क्योंकि यह पलक नहीं उसकी लाश है।" उसके कहते ही पिया चिल्लाते हुए उससे दूर हो गई।
To be continued
shweta soni
26-Jul-2022 07:19 PM
Bahut achhi rachana 👌
Reply
Art&culture
03-Jan-2022 11:31 PM
Very very nice...
Reply
Seema Priyadarshini sahay
08-Dec-2021 08:45 PM
बहुत ही रोचक कहानी👌👌👌👌
Reply